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कानपुर: छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय में वास्तुशास्त्र में नए कोर्स की शुरुआत, भारतीय प्राच्य विद्या को मिलेगा नया शैक्षणिक और रोजगारपरक स्वरूप, यहाँ जानें पूरी खबर

कानपुर: छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय में वास्तुशास्त्र में नए कोर्स की शुरुआत, भारतीय प्राच्य विद्या को मिलेगा नया शैक्षणिक और रोजगारपरक स्वरूप, यहाँ जानें पूरी खबर
  • सीएसजेएमयू में पीजी डिप्लोमा इन वास्तुशास्त्र कोर्स की शुरुआत सत्र 2025-26 से होगी।
  • किसी भी स्नातक डिग्री वाले व्यक्ति को 45% अंकों के साथ प्रवेश की पात्रता होगी।
  • कोर्स में थ्योरी के साथ फील्ड प्रैक्टिकल और वास्तु सलाह की ट्रेनिंग भी दी जाएगी।
  • वास्तुशास्त्र, ज्योतिर्विज्ञान और कर्मकांड कोर्स रोजगार के नए अवसर उपलब्ध करा रहे हैं।
  • दीन दयाल शोध केंद्र भारतीय प्राच्य विद्या को आधुनिक शिक्षा प्रणाली में जोड़ रहा है।

कानपुर: भारतीय प्राच्य ज्ञान परंपरा को पुनः प्रतिष्ठित करने की दिशा में देश में जहां केंद्र और राज्य सरकारें अनेक योजनाएं चला रही हैं, वहीं छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय (सीएसजेएमयू), कानपुर इस दिशा में एक महत्वपूर्ण और ठोस पहल करते हुए अपने पं. दीन दयाल उपाध्याय शोध केंद्र के माध्यम से ऐसे शैक्षणिक पाठ्यक्रमों को विस्तार दे रहा है, जो न केवल हमारी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ाव बनाए रखते हैं, बल्कि रोजगार के नए अवसर भी खोलते हैं

इसी कड़ी में विश्वविद्यालय सत्र 2025-26 से एक नया कोर्स “पीजी डिप्लोमा इन वास्तुशास्त्र” प्रारंभ करने जा रहा है, जो उन युवाओं और विद्यार्थियों के लिए सुनहरा अवसर होगा, जो वास्तु के क्षेत्र में करियर बनाना चाहते हैं या इसमें रुचि रखते हैं।

क्या है पीजी डिप्लोमा इन वास्तुशास्त्र कोर्स?

यह कोर्स वास्तुशास्त्र के सिद्धांतों, उनके व्यवहारिक प्रयोग, नक्शा विश्लेषण, ऊर्जा संतुलन, गृह निर्माण के दिशानुसार उपाय और आधुनिक वास्तु सलाह जैसे विषयों पर केंद्रित होगा। इसमें केवल पुस्तकीय ज्ञान नहीं, बल्कि मैदानी प्रशिक्षण और केस स्टडी आधारित शिक्षा दी जाएगी, जिससे विद्यार्थी वास्तु विशेषज्ञ के रूप में विकसित हो सकें।

कोर्स की प्रमुख जानकारी इस प्रकार है:

  • कोर्स नाम: पीजी डिप्लोमा इन वास्तुशास्त्र
  • अवधि: 1 वर्ष (2 सेमेस्टर)
  • फीस: ₹11,200/-
  • सीटें: कुल 30
  • योग्यता: किसी भी विषय में स्नातक (45% अंक अनिवार्य)
  • प्रवेश आयु सीमा: नहीं है – किसी भी उम्र के व्यक्ति आवेदन कर सकते हैं

भारतीय परंपरा को समर्पित शोध केंद्र का योगदान

पं. दीन दयाल उपाध्याय शोध केंद्र के निदेशक प्रो. सुधीर कुमार अवस्थी ने बताया कि विश्वविद्यालय का यह केंद्र पहले से ही भारतीय प्राच्य विद्या को बढ़ावा देने के लिए एमए ज्योतिर्विज्ञान और पीजी डिप्लोमा इन कर्मकांड जैसे पाठ्यक्रमों का संचालन कर रहा है, जिन्हें छात्रों से बेहतर प्रतिक्रिया मिल रही है। अब इन पाठ्यक्रमों की श्रृंखला में वास्तुशास्त्र को भी शामिल किया गया है, जिससे युवाओं को स्वरोजगार का सशक्त साधन प्राप्त होगा।

वास्तुशास्त्र से रोजगार का सुनहरा अवसर

शोध केंद्र के सहायक निदेशक डॉ. दिवाकर अवस्थी ने बताया कि आज के युग में लोग अपने घर, दफ्तर, दुकान या फ्लैट निर्माण से पहले वास्तु विशेषज्ञ की सलाह लेना आवश्यक समझते हैं। वास्तु में पारंगत विद्यार्थी इस कोर्स को करने के बाद स्वयं का कंसल्टेंसी कार्यालय, ऑनलाइन सलाह केंद्र या वास्तु विश्लेषण सेवा शुरू कर सकते हैं।

उन्होंने बताया कि ठीक इसी तरह एमए ज्योतिर्विज्ञान करने वाले छात्र ज्योतिष परामर्श केंद्र स्थापित कर सकते हैं और पीजी डिप्लोमा इन कर्मकांड पूरा करने वाले पुरोहित सेवाएं देकर धार्मिक आयोजनों में अपनी भूमिका निभा सकते हैं।

शोध केंद्र द्वारा संचालित अन्य पाठ्यक्रम

1. एमए ज्योतिर्विज्ञान

  • सीटें: 50
  • फीस: ₹10,200/-
  • अवधि: 2 वर्ष (4 सेमेस्टर)
  • योग्यता: किसी भी विषय में स्नातक (45% अंक)

2. पीजी डिप्लोमा इन कर्मकांड

  • सीटें: 50
  • फीस: ₹9,200/-
  • अवधि: 1 वर्ष (2 सेमेस्टर)
  • योग्यता: इंटरमीडिएट पास (45% अंक)

प्राचीन ज्ञान को आधुनिक रोजगार से जोड़ने की दिशा में बड़ी पहल

यह कोर्स उन लोगों के लिए भी उपयोगी है जो हिन्दू वास्तुशास्त्र में न केवल आस्था रखते हैं, बल्कि इसके व्यावसायिक पक्ष को भी पहचानते हैं। कोर्स की कोई उम्र सीमा नहीं है, जिससे विभिन्न वर्गों के लोग इसमें प्रवेश ले सकते हैं – छात्र, गृहिणी, सेवा निवृत्त कर्मचारी या कोई भी इच्छुक व्यक्ति।

शोध केंद्र का यह प्रयास ‘भारतीय ज्ञान परंपरा को जीवंत बनाए रखने’ और ‘आधुनिक संदर्भ में उपयोगी और व्यावसायिक बनाने’ की दिशा में एक सशक्त कदम है। आने वाले वर्षों में ऐसे पाठ्यक्रमों की मांग और लोकप्रियता निश्चित रूप से और बढ़ेगी।

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